हम पंछी उन्मुक्त गगन के ( शिवमंगल सिंह 'सुमन' )
कविता का मूलभाव
यह कविता हमें इस बात के लिए प्रेरित
करती है कि बंधन में रखकर हमें कितनी भी सुविधाएँ क्यों न दी जाएँ, सभी व्यर्थ होती हैं। स्वतंत्र जीवन में ही हम अपनी इच्छा से सभी काम कर सकते
हैं, जबकि पराधीनता में दूसरों की इच्छाओं को
मानना पड़ता है। परतंत्र जीवन सदैव कष्टमय होता है। ऐसे
समय में मन की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है। स्वतंत्र जीवन में कठिनाइयाँ भी
कितनी अधिक क्यों न हों, वह गुलामी के जीवन से
अच्छा होता है। अतः पक्षी भी खुले में रहकर मैदा से भरी सोने की कटोरी की अपेक्षा
नीम के कड़वे फल खाना अधिक पसंद करते हैं।
कवि ने इस कविता के माध्यम से संदेश देना चाहा है कि पराधीन सपनेहुँ सुख
नाहीं। यानी स्वतंत्रता सबसे अच्छी है। स्वतंत्र रहकर ही अपने सपने और अरमान पूरे
किए जा सकते हैं। पराधीनता में सारी इच्छाएँ खत्म हो जाती हैं। पराधीन रहने से
हमें अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए भी दूसरो पर निर्भर हो जाना पड़ता है। अतः कवि
ने इस कविता के माध्यम से स्वतंत्रता के महत्त्व को दर्शाया है। अतः हमें पक्षियों
को बंदी बनाकर नहीं रखना चाहिए। उन्हें आजाद कर आसमान में उड़ान भरने देना चाहिए।
No comments:
Post a Comment