Monday, September 14, 2020

कहानी-लेखन

                 कहानी-लेखन



गधे की होशियारी, गधे को भारी

एक नमक बेंचने वाला रोज अपने घर से नमक एक गधे पर लादकर शहर में बेंचने जाया करता था।


एक दिन की बात है, नमक विक्रेता रोज की तरह गधे पर नमक लाद्कर शहर जा रहा था कि रास्ते में एक गड्ढा आया जिसमें पानी भरा था और गधा उसमें गिर गया।


और जब गधा पानी से बाहर आया तो उसे नमक का वजन बहुत कम लग रहा था क्यूँकि ज्यादातर नमक पानी में घुल गया था जिससे गधे को बहुत खुशी हुई।


नमक विक्रेता अगले दिन फिर गधे पर नमक लाद्कर बेंचने के लिये निकला और उसी गड्ढे के पास फिर पहुँचा और गधा इस बार जानबूझ कर गड्ढे में गिर गया। वजन फिर कम हो गया और गधा फिर खुश हो गया।

नमक विक्रेता ने देखा कि गधा जानबूझ कर वजन कम करने के लिये रोज गड्ढे में कूद जाता है। और नमक का नुक्शान कर देता है।


गधे को सबक सिखाने के लिये उसने एक दिन नमक की जगह कपड़े लाद दिये गधे के ऊपर और गधा रोज की तरह उस दिन भी जाकर गड्ढे में कूद गया। कपड़ा भीग गया और उसका वजन कम होने के बजाय और ज्यादा हो गया। और वो भीगा हुआ कपड़ा विक्रेता गधे पर लाद्कर शहर लेकर गया और फिर शहर से घर, जिससे गधे की हालत खराब हो गयी और उसने कसम खा ली कि अब दोबारा कभी ऐसा नहीं करूँगा।


सीख: हमेशा भाग्य (luck) काम नहीं आता, तो बुद्धि से काम लिया करो।


अभ्यास-कार्य

वर्कबुक पेज नम्बर ७१ में दिए गए मुद्दे के आधार पर कहानी लिखिए।




Tuesday, September 8, 2020

निबंध (अभ्यास-कार्य)

               

अभ्यास-कार्य



     नीचे दिए गए मुद्दो की सहायता से 'पुस्तक हमारी सहायक' पर निबंध लिखना।

1 किताबो से मिलने वाला ज्ञान|
2 अनेको समस्याओ का हल।
3 सच्ची सथी की तरह मददगार।
4 अनेको प्रकार की जानकारी।
5 मूल्यवान बातो का खजाना।

निबंध-लेखन

            विद्यार्थी जीवन

भारतीय संस्कृति में मानव जीवन को चार अवस्थाओं या आश्रमों में विभक्त किया गया है- ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम, तथा संन्यास आश्रम। जन्म से लेकर 25 वर्ष तक की आयु के काल को ब्रह्मचर्य आश्रम कहा जाता था। यही विद्यार्थी जीवन है। इस काल में विद्यार्थी को गुरुकुल में रहकर विद्याध्ययन करना पड़ता था। विद्यार्थी जीवन मनुष्य जीवनकी सबसे अधिक मधुर तथा सुनहरी अवस्था है। 

विद्यार्थी जीवन सारे जीवन की नींव है। अतः मानव जीवन की सफलता असफलता विद्यार्थी जीवन पर ही आश्रित है। इसी काल में भावी जीवन की भव्य इमारत की आधारशिला का निर्माण होता है। यह आधारशिला जितनी मजबूत होगी, भावी जीवन भी उतना ही सुदृढ़ होगा। इस काल में विद्याध्ययन तथा ज्ञान प्राप्ति पर ध्यान न देने वाले विद्यार्थी जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते।


विद्यार्थी का पहला कर्तव्य विद्या ग्रहण करना है। इसी जीवन में विद्यार्थी अपने लिए अपने माता-पिता तथा परिवार के लिए और समाज और अपने राष्ट्र के लिए तैयार हो रहा होता है। विद्यार्थी का यह कर्तव्य है कि वह अपने शरीर, बुद्धि, मस्तिष्क, मन और आत्मा के विकास के लिए पूरा-पूरा यत्न करे। आलस्य विद्यार्थियों का सबसे बड़ा शत्रु है। जो विद्यार्थी निकम्मे रहकर समय आँवा देते हैं, उन्हें भली-भाँति अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती। विद्यार्थी जीवन का एक-एक क्षण अमूल्य है।


विद्यार्थी को संयमी होना पड़ता है। व्यसनों में फँसने वाले विद्यार्थी कभी उन्नति नहीं कर सकते। शिक्षकों तथा माता-पिता के प्रति आदर और श्रद्धा भाव रखना विद्यार्थी के लिए नितांत आवश्यक है। अनुशासन प्रियता, नियमितता, समय पर काम करना, उदारता, दूसरों की सहायता, पुरुषार्थ, सत्यवादिता, देश-भक्ति आदि विद्यार्थी जीवन के आवश्यक गुण हैं। इन गुणों के विकास

के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। इसके लिए उन्हें कुसंगति से बचना चाहिए तथा आलस्य का परित्याग करके विद्यार्थी जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए। आज के विद्यार्थी वर्ग की दुर्दशा के लिए वर्तमान शिक्षा पद्धति भी जिम्मेदार है। अतः उसमें परिवर्तन आवश्यक है।


शिक्षाविदों का यह दायित्व है कि वे देश की भावी पीढ़ी को अच्छे संस्कार देकर उन्हें प्रबुद्ध तथा कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बनाएँ तो साथ ही विद्यार्थियों का भी कर्तव्य है कि भारतीय संस्कृति के उच्चादर्शों को अपने जीवन में उतारने के लिए कृतसंकल्प हो।